कोहरे वीडियो में बरगद घाट
कोहरे से आच्छादित रही आज इलाहाबाद की सुबह सर्दियों में पहली बार इतना घना कोहरा इलाहाबाद को सफेद चादर में लपेटे रहा मैंने सुबह का कुछ वक्त अपने घर के करीब यमुना तट के पास बरगद घाट पर बिताया बरगद घाट उन लोगों को बहुत पसंद आता है जो शहर के शोरगुल में शांति की तलाश करते हैं यह सच है कि यहां अब वह बरगद नहीं रह गया है जिसके नाम पर इस घाट का नाम रखा गया है यह हनुमान जी का एक मंदिर है और एक और छोटा सा मंदिर है जहां महादेव जी विराजे है लगभग 500 साल पुराना यह मंदिर भक्तों की आस्था के कारण अब तीर्थ में बदल गया है बहुत खूबसूरत जगह है कभी इलाहाबाद आना हो तो बरगद घाट पर जरूर आइए अच्छा लगेगा आपको ।
चित्र और परिचय अजामिल
गुरुवार, 28 दिसंबर 2017
कोहरे में डूबा प्रयाग का बरगद घाट
रविवार, 24 दिसंबर 2017
पुराने जमाने का रेडियो फोनोग्राम
ये रेडियोग्राम ही है नीचे एक हॅंडल है जिसे खींचने पर नीचे ग्रामोफोन नजर आयेगा .
रेडियो में सबसे पहले जिस कंसोल पर काम किया था वो भी RCA का ही था. करीब 60 डिग्री पर खड़ा हुआ कंसोल. इस पर फेडर गोल घूमने वाले होते थे और हर फेडर पर एक key लगी रहतीँ थी जिसे दायीं तरफ करने से सिर्फ स्टूडियो में सुनाई देता था उस फेडर से जुड़ी मशीन का प्रोग्राम और बायीं तरफ करने से air पर चला जाता था. एक फेडर और key का जोड़ा रिसीविंग सेंटर से आने वाली लाइन का भी होता था . यानी news देने का काम भी announcer को ही करना होता था . इसके बाद इंजीनीयरों ने plan करके कोंसोल अपने हाथ में लिया ताकि इंजीनियर भाइयों की तनख्वाहें बढ़ाने का आंदोलन शुरू किया जा सके .
शनिवार, 23 दिसंबर 2017
स्ट्रीट सर्कस रोटी के लिए संतुलन का कमाल
** यह जो है ज़िंदगी
संतुलन के कमाल पर सिंकी रोटिया
आजादी के बाद कुछ दशकों तक हमारे देश में कुछ सुप्रसिद्ध सर्कस हुआ करते थे धीरे धीरे आज यह सर्कस लगभग समाप्त हो चुके हैं और जो थोड़े बहुत छोटे शहरों कस्बों और गांव देहाती में पहुंच भी जाते हैं तो यह सर्कस इतना ज्यादा आर्थिक संघर्ष कर रहे हैं कि इनका नाम बस समाप्त होने को है अपने देश में कुछ जनजातियां और बंजारे स्ट्रीट सर्कस लेकर आते जाते मेलेों में दिखाई दे जाते हैं इलाहाबाद के पिछले साल इलाहाबाद के कुंभ में हमें एक ऐसा ही बंजारा परिवार मिला था उसके परिवार में कुल 4 लोग थे इनमें परिवार का मुखिया मेले में स्ट्रीट सर्कस का तामझाम लगाता था परिवार की मुखिया स्त्री और उसका बेटा ढोलक और ताली बजाकर पूरे खेल के दौरान एक ले पूर्ण संगीत पैदा करते थे एक बेटी थी जो सामान्य से कुछ अलग और अजीबोगरीब कपड़े पहन कर दो के बीच तनी हुई रस्सी पर चलकर स्ट्रीट सर्कस के एरीना के इर्द-गिर्द खड़े दर्शकों का मनोरंजन करती थी तरह-तरह के करतब दिखाती थी रस्सी पर नाचना भी उसका एक कर्तव्य था जमीन से वह यह सारे करता इतनी ऊंचाई पर करती थी कि अगर उसका संतुलन बिगड़ जाए तो वह नीचे गिर कर अपना हाथ पैर अवश्य तोड़ बैठे परंतु रोज के अभ्यास और पूरे परिवार की रोटी कमाने की जिम्मेदारी ने उसे सभी तरह के भय से मुक्त कर दिया था स्ट्रीट सर्कस के उस मुखिया ने हमें बताया कि अब उसकी बिरादरी में बहुत कम लोग ऐसे रह गए हैं जो इस तरह का पेशा करते हैं स्ट्रीट सर्कस की यह विधा अब समाप्त हो रही है लोग उनके संतुलन का कमाल देखकर रुपए दो रुपए भी उन्हें शाबाशी के तौर पर नहीं देना चाहते उसका परिवार हमेशा आर्थिक संघर्ष में फंसा रहता है उसे लड़की की शादी करनी है लेकिन शादी के बाद जब लड़की चली जाएगी तब उसका परिवार कैसे चलेगा यह सोच कर वह डरा हुआ है और उसकी शादी को टाल रहा है स्ट्रीट सर्कस लुप्त हो रहा है आखिरी सांसे ले रहा है बस कुछ Banjaran जातियां हैं जो इसे जिला आए हुए हैं मेरे मित्र विकास चौहान ने स्ट्रीट सर्कस की बहुत सी तस्वीरें अपने कैमरे में कैद की है कौन जाने आगे आने वाले समय में यह तस्वीरें ही हमें स्ट्रीट सर्कस की याद दिलाने का कार्य करे आश्चर्य इस बात का है कि सरकार छोटी छोटी कलाओं को संरक्षण देती है लेकिन स्ट्रीट सर्कस को यह संरक्षण क्यों नहीं मिल रहा है सोचने वाली बात है ।
रिपोर्ट अजामिल
चित्र विकास चौहान
रविवार, 17 दिसंबर 2017
यह जो है ज़िंदगी चीनी की मिठाई
**यह जो है जिंदगी
चीनी की मिठाई या
चीनी के खिलौने
यह है सड़क पर घूम कर रोटी रोजी कमाने वाले मेहनतकश राजू । ये पेस्टेड चीनी मिठाई के खिलौने बनाकर बच्चों को बेचते है । दिनभर दौड़ते रहने के बाद 3-4 सौ रूपये कमा पाते हैं राजू जिससे उनका परि वार चलता है । दो बेटियां है राजू की । इलाहाबाद के एक पिछड़े इलाके में उनका घर है । रोटी रोज़ी के लिए मुंबई भी गए ।वहां भी यही चीनी मिठाई बेचीं ।600 रूपये तक रोज़ कमाया पर घर के लिए कभी कुछ नहीं बचा सके । उनका कहना है कि पहले के जमाने में बच्चों के बीच यह मिठाई काफी लोकप्रिय थी लेकिन अब लोग अपने बच्चों को चॉकलेट और कोल्डड्रिंक तो महंगा से महंगा दिलवा देते हैं लेकिन यह मिठाई नहीं खिलाते राजू का यह भी कहना है कि वह इस मिठाई को बनाने में पूरी सावधानी बरतते हैं और इसमें ऐसा कुछ भी नहीं मिला दे जो बच्चों को नुकसान करें उनकी किस मिठाई में चीनी फ्लेवर और नींबू होता है बस यह मिठाई इतने से ही बन जाती है इस मिठाई की सबसे बड़ी बात जो बच्चों को पसंद आती है इस से बनने वाले खिलौने हैं पर अब इसका जमाना भी जा रहा है शायद 1 दिन ऐसा भी आ जाएगा जब यह मिठाई किसी को देखने को भी नहीं मिलेगी और इसे बेचने वाले हजारों मेहनतकश बेरोजगार हो जाएंगे ।
चित्र एवं आलेख / अजामिल
शुक्रवार, 15 दिसंबर 2017
यह जो है जिंदगी किस्मत बताने वाला परिंदा
** यह जो है जिंदगी
**किस्मत बताने वाला परिंदा
सुखीराम जौनपुर का रहने वाला है । एक परिंदे के माध्यम से सबका भाग्य बताता हैं लेकिन उश्का भाग्य खुद देखिए कि वह पिछले 15 वर्षों से फुटपाथ से लेकर मेलेठेलें तक में अपनी दुकान सजा कर बैठते हैं । उनकी दुकान में एक छोटा सा परिंदा है जो एक पंक्ति में सजी हुई तमाम चिट्ठी मेंं से भाग्य पूछने वाले ग्राहक के नाम की चिट्ठी निकालकर उसका भाग्य बताता है । यह बड़ा मजेदार खेल है । सुखीराम बताता है की सगुन विचार ने का यह कार्य रामचरितमानस से प्रेरित है । सुखीराम अपने ग्राहक का नाम पूछ कर उस परिंदे को बताता है और उससे कहता है कि इनका भाग्य बता । पिंजरा खुलते ही वो परिंदा बाहर आता है और कतार में लगी tu yg चिट्टियों में से एक चिट्ठी निकालकर सुखीराम को दे देता है । सुखीराम उसे खोल कर परिंदे को दिखाता है । परिंदा उस लिफाफे से भाग्य की चिट्ठी अपनी चोंच से खींचकर बाहर निकाल देता है । उस चिट्ठी पर ग्राहक का भाग्य लिखा होता है । इस सेवा के बदले सुखीराम को किसी समय में 2 रुपये मिलते थे । अब वह 10 रुपये लेता है । महंगाई जो बढ़ गई है । प्रतिदिन सुखीराम इस खेल से लगभग 50 लोगों को उनका भाग्य बताने में कामयाब हो जाता है यानी लगभग 500 रुपये ।
उसे प्रतिदिन मिल जाते हैं । कभी कभी पूरा दिन खाली निकल जाता है । सॉ 200 रुपए भी नहीं मिल पाते । बावजूद इसके सुखीराम परिंदे से कभी अपना भाग्य नहीं पूछता । सुखीराम ने यह प्रशिक्षित परिंदा मिर्जापुर से साढे 500 दुपये में खरीदा था । इसके पहले उसके पास एक तोता था । वह भी यही काम करता था । कई परिंदे मर चुके हैं । मिर्जापुर का वह व्यक्ति इस काम के लिए परिंदों को प्रशिक्षित करता है और पिजड़े के साथ इसेे बेचता है । इस धंधे में बहुत से सुखीराम हैं जो यह काम करते हैं और अपने भाग्य को कोसते हुए दुखीराम बने रहते हैं लेकिन धंधा तो धंधा है । भाग्यवादियों के रहते खूब फल-फूल रहा है और परिंदे भी खुला आकाश छोड़कर पिजड़े में रहने को मजबूर है । यह उनका भाग्य है जिसकी चिट्ठी कोई नहीं निकालता । चिट्ठी निकालने की इस सेवा के बदले परिंदे को मिलता है जौ का दाना । पेट की आग परिंदे से भी सब कुछ करवा रही है । सुखीराम यह धंधा भी नही छोड़ रहा है और परिंदा सुखीराम को नहीं छोड़ रहा है । हां यह भी बता दें कि सुखीराम काले घोड़े की नाल से बनी अंगूठियां भी बेचता है जो प्रेमी प्रेमिका को एक दूसरे से मिलाने का करिश्मा करती है । कुछ भी हो यह भी एक जिंदगी है यह भी एक संघर्ष है यह भी एक धंधा है जो अंधविश्वास के दौर में फल फूल रहा है।
** चित्र एवं रिपोर्ट / अजामिल
बुधवार, 13 दिसंबर 2017
इलाहाबादी अमरूद
**कोई जवाब नहीं
इलाहाबादी अमरूद का इस साल इलाहाबाद में अमरूदों की बहार है पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष अमरूद को पैदा हुए हैं इस बार इसकी कीमत भी कम है और यह देश के अन्य शहरों में भी सप्लाई किए जा रहे हैं उम्मीद की जाती है कि ठंड बढ़ने के साथ इलाहाबादी अमरूद की अकड़ देश के लगभग सभी हर मंडियों पर और मजबूत हो जाएगी सरकार की ओर से अगर सहयोग मिले तो इलाहाबादी अमरूद विदेशी भी भेज जा सकते हैं लेकिन अभी यह काम बहुत कम हो रहा है बाहर से आने वाले लोगों इलाहाबादी अमरूद लुभा रहे हैं हम लोग यहां से जाते समय इलाहाबाद का प्रसाद समझकर इलाहाबादी अमरुद को ले जा रहे हैं बिस्मिल इलाहाबादी ने एक बार अपने एक शेर में कहा था कि इलाहाबाद में दो ही चीज है लोगों को आकर्षित करती हैं एक डिसमिल खुद और दूसरा इलाहाबाद के अमरूद इसके अलावा इलाहाबाद में है ही क्या यह बात शायर का अपना कहने का अंदाज था इलाहाबाद में बहुत कुछ है लेकिन यह भी सच है इलाहाबादी अमरूद के आगे किसी की चलती नहीं इलाहाबादी अमरूद देखने में बेहद सुंदर मीठे और लालिमा से युक्त है ।
चित्र आर्य रिपोर्ट अजामिल