** यह जो है जिंदगी
**किस्मत बताने वाला परिंदा
सुखीराम जौनपुर का रहने वाला है । एक परिंदे के माध्यम से सबका भाग्य बताता हैं लेकिन उश्का भाग्य खुद देखिए कि वह पिछले 15 वर्षों से फुटपाथ से लेकर मेलेठेलें तक में अपनी दुकान सजा कर बैठते हैं । उनकी दुकान में एक छोटा सा परिंदा है जो एक पंक्ति में सजी हुई तमाम चिट्ठी मेंं से भाग्य पूछने वाले ग्राहक के नाम की चिट्ठी निकालकर उसका भाग्य बताता है । यह बड़ा मजेदार खेल है । सुखीराम बताता है की सगुन विचार ने का यह कार्य रामचरितमानस से प्रेरित है । सुखीराम अपने ग्राहक का नाम पूछ कर उस परिंदे को बताता है और उससे कहता है कि इनका भाग्य बता । पिंजरा खुलते ही वो परिंदा बाहर आता है और कतार में लगी tu yg चिट्टियों में से एक चिट्ठी निकालकर सुखीराम को दे देता है । सुखीराम उसे खोल कर परिंदे को दिखाता है । परिंदा उस लिफाफे से भाग्य की चिट्ठी अपनी चोंच से खींचकर बाहर निकाल देता है । उस चिट्ठी पर ग्राहक का भाग्य लिखा होता है । इस सेवा के बदले सुखीराम को किसी समय में 2 रुपये मिलते थे । अब वह 10 रुपये लेता है । महंगाई जो बढ़ गई है । प्रतिदिन सुखीराम इस खेल से लगभग 50 लोगों को उनका भाग्य बताने में कामयाब हो जाता है यानी लगभग 500 रुपये ।
उसे प्रतिदिन मिल जाते हैं । कभी कभी पूरा दिन खाली निकल जाता है । सॉ 200 रुपए भी नहीं मिल पाते । बावजूद इसके सुखीराम परिंदे से कभी अपना भाग्य नहीं पूछता । सुखीराम ने यह प्रशिक्षित परिंदा मिर्जापुर से साढे 500 दुपये में खरीदा था । इसके पहले उसके पास एक तोता था । वह भी यही काम करता था । कई परिंदे मर चुके हैं । मिर्जापुर का वह व्यक्ति इस काम के लिए परिंदों को प्रशिक्षित करता है और पिजड़े के साथ इसेे बेचता है । इस धंधे में बहुत से सुखीराम हैं जो यह काम करते हैं और अपने भाग्य को कोसते हुए दुखीराम बने रहते हैं लेकिन धंधा तो धंधा है । भाग्यवादियों के रहते खूब फल-फूल रहा है और परिंदे भी खुला आकाश छोड़कर पिजड़े में रहने को मजबूर है । यह उनका भाग्य है जिसकी चिट्ठी कोई नहीं निकालता । चिट्ठी निकालने की इस सेवा के बदले परिंदे को मिलता है जौ का दाना । पेट की आग परिंदे से भी सब कुछ करवा रही है । सुखीराम यह धंधा भी नही छोड़ रहा है और परिंदा सुखीराम को नहीं छोड़ रहा है । हां यह भी बता दें कि सुखीराम काले घोड़े की नाल से बनी अंगूठियां भी बेचता है जो प्रेमी प्रेमिका को एक दूसरे से मिलाने का करिश्मा करती है । कुछ भी हो यह भी एक जिंदगी है यह भी एक संघर्ष है यह भी एक धंधा है जो अंधविश्वास के दौर में फल फूल रहा है।
** चित्र एवं रिपोर्ट / अजामिल
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